बेवड़ा या फिर....
बेवड़ा या फिर .....
उस दिन
रेलवे स्टेशन की लिफ्ट में
जैसे ही एक शख्स लड़ख़ड़ाया…
गिरते गिरते बचा…
बेकार में मच गया शोर…
ऊपर से नीचे तक हुलिया देखने लगे सभी..
कपडे़ थोड़े मैले-कुचैले थे ..पुराने से…
बस…..
हो गया फैसला…
हिकारत भरी निगाहें लगी घूरने उसे …
लेकिन …
रास्ते पर चलते चलते
अचानक गिरने वाला हर शख़्स
नहीं होता पियक्कड़…
न ही नशेड़ी….
बस-गाड़ी-फुटपाथ पर
किसी के ऊपर
अचानक लुड़क जाने वाला भी
हमेशा कोई आवारा, लफंगा हो…
ऐसा भी नहीं होता….
सिर घूम जाता है अकसर भूखे पेट भी
आ ही जाता है चक्कर …
लाचारी, बेबसी, बीमारी, कमज़ोरी,
मुफ़लिसी, मजबूरी किसी में भी
हो जाता है इंसान अकसर
बदहाल-बेहाल, अस्त-व्यस्त, त्रस्त…
इसीलिए..
जाने बिना किसी ज़िंदगी की दास्तां
ये लेबल
पियक्कड़, नशेड़ी, आवारा, लफंगे वाले
यूं ही न चिटकाया करिए…
हर गिरने वाले को …
गिरते गिरते संभलने वाले को …
कम से कम
देखिए एक नज़र, हाल पूछिए…
पानी पूछिए नहीं, दो घूंट पिला दीजिए…
पम्मी के बाईक को इक दिन
जब मारी कार ने टक्कर
दूर जा गिरा उछल कर …
लगा उसे एक पल कि बस गया …
आंखों के आगे अंधेरा छाया घना…
फरिश्ता हुआ एक प्रगट तभी
रिक्शेवाले के भेष में ….
थामे हुए पानी की बोतल ….
हलक से नीचे दो घूंट उतरते ही …
जान लौट आई थी उस की जैसे …
अब …
पम्मी रखता है हर वक्त
पानी की एक छोटी बोतल अलग से …
क्योंकि….
मालिक के रंगों का क्या पता…..
इसलिए ….
डरता है पम्मी ….
किसी दिन अगर ईश्वर ने यही …
जिम्मेवारी दी उसे सौंप
अगर न रहा उस के पास पानी ऐन वक्त पर…
क्या मुंह दिखाएगा किसी को…
प्रवीण
16.7.25
Comments
Post a Comment